विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के मौके पर इंदौर के सरकारी स्कूल में खास हरित पहल देखने को मिली। बच्चों ने अपने नन्हे हाथों से औषधीय पौधों का रोपण किया और वातावरण बचाने का संदेश दिया। बच्चों ने प्रकृति के करीब रहकर अपने व्यवहार और सोच में हरियाली लाने का साथ ही, हर सप्ताह पौधों की देखभाल का जिम्मा भी उठाया।
मालवमंथन की अगुवाई में आयोजित इस कार्यक्रम में पर्यावरणविद डॉ. स्वप्निल व्यास ने बच्चों को पेड़ लगाने की शिक्षा दी। उन्होंने समझाया कि पेड़-पौधों से जुड़ना सिर्फ पर्यावरण की चिंता नहीं, बल्कि संस्कृति, स्वास्थ्य और जिम्मेदारी भी है। बच्चों को प्राचीन भारतीय परंपराओं की ओर लौटने, तुलसी, पीपल, और नीम जैसे पौधों के महत्व को समझाया गया। औषधीय पौधों की जानकारी से बच्चों को यह भी बताया गया कि प्रकृति के संसाधन ही असली जीवन रक्षा हैं। ऐसे आयोजनों से बच्चों के भीतर संवेदना व जिम्मेदारी की भावना मजबूत होती है।
आयुर्वेद और पर्यावरण की अनमोल धरोहर
औषधीय पौधों का महत्व केवल आयुर्वेद तक सीमित नहीं, बल्कि वे हमारे पर्यावरण का भी संरक्षण करते हैं। तुलसी, नीम, गिलोय, एलोवेरा जैसे पौधे न केवल बीमारियों से बचाव में सहायक हैं, बल्कि वायु की गुणवत्ता बढ़ाने, कीट सरीसृप को दूर रखने में भी कारगर हैं। जब बच्चे खुद इन पौधों को रोपते हैं, पानी देते हैं और सहेजते हैं, तो उनके भीतर जिम्मेदारी की भावना पनपती है। ऐसे कार्यक्रम विद्यालय परिसर को न सिर्फ हराभरा बनाते हैं, बल्कि बच्चों को प्रकृति की गहराई से पहचान भी कराते हैं। पर्यावरण शिक्षण के इस व्यवहारिक तरीके से विद्यार्थियों में स्वयंसेवी संरक्षण की आदत पड़ती है, जिससे भविष्य में वे जिम्मेदार नागरिक बन सकें।
बच्चों को प्रकृति से जोड़ने के फायदे और समाज के लिए संदेश
आज के भाग-दौड़ और शहरीकरण के दौर में बच्चों के जीवन में पेड़-पौधों से जुड़ना बेहद जरूरी है। जब वे खुद पौधों की जड़ों में मिट्टी भरते हैं और रोज उन्हें पानी देते हैं, तो यह केवल एक शारीरिक गतिविधि नहीं रहती, बल्कि उनके मन में दया, संवेदना और जिम्मेदारी बोती है। यह अनुभव किताबों से परे जा कर जीवन जीने की असली शिक्षा देता है। प्रधानाचार्य श्रीमती भारती वैष्णव ने भी इसी बात पर जोर दिया कि स्कूल में ऐसे आयोजन बच्चों में सकारात्मक सोच और संवेदनशीलता पैदा करते हैं। बच्चों ने पर्यावरण संरक्षण की शपथ ली और हर सप्ताह पौधों की देखभाल करने का संकल्प दोहराया।
इन सभी गतिविधियों ने बच्चों के मन में प्रकृति के प्रति आत्मीयता बढ़ाई है, जो आगे चलकर एक स्वच्छ, संवेदनशील और हरा-भरा समाज गढ़ने की नींव रखेगी।