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Saturday, August 2, 2025
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साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित को मिली राहत, 323 गवाह, 34 मुकर गए, 30 की मौत, 17 साल पुराने केस में कोर्ट ने कहा- आरोप साबित नहीं हो सके

मालेगांव बम विस्फोट केस, जिसमें हिंदू राइट विंग से जुड़े नामों का आरोप था, 17 साल की लंबी प्रक्रिया के बाद न्यायिक निष्कर्ष पर पहुंचा। NIA कोर्ट ने सबूतों की कमी और जांच में तकनीकी खामियों के चलते सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि हादसे में इस्तेमाल हुई बाइक का मालिकाना और धमाके की साजिश साबित नहीं हो सकी।

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए इस ब्लास्ट में आईईडी बाइक पर लगाकर धमाका किया गया था। शुरुआती जांच ATS ने की और बाद में NIA को केस सौंपा गया। NIA ने भी चार्जशीट दाखिल की, लेकिन कोर्ट में सुनवाई के दौरान 323 गवाहों की परीक्षा हुई, जिसमें बड़ी संख्या में गवाह मुकर गए और कई गवाहों की मौत हो गई। कोर्ट ने कहा की बाइक का चेसिस नंबर रिकवर नहीं हुआ, घटनास्थल से फिंगरप्रिंट या अन्य पुख्ता सबूत सामने नहीं आए। मेडिकल रिपोर्ट्स में भी भिन्नता रही। अंत में, कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया, जिससे यह फैसला कानून और जांच प्रक्रिया को लेकर मिसाल बन गया।

केस की पूरी टाइमलाइन, जांच, गवाह और बदलते फैसले

2008 में हुए धमाके के बाद ATS जांच में 12 गिरफ्तारियां हुई थीं, जिनमें साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित शामिल थे। बाद में NIA ने कई आरोपियों को क्लीनचिट भी देने की सिफारिश की, पर 2017 में कोर्ट ने सातों आरोपियों पर ट्रायल चलाने का आदेश दिया। केस की सुनवाई 2018 में शुरू हुई और 2024 तक 34 गवाह पलट गए, जबकि 30 से ज्यादा की गवाही से पहले मौत हो गई। इस केस की सुनवाई में चार जज और तीन जांच एजेंसियां बदल चुकी हैं। अंतिम बहस अप्रैल 2024 में पूरी हुई थी, और अब कोर्ट ने सबूतों के अभाव और जांच में कमियों के चलते सभी आरोपियों को बरी किया है।

कोर्ट के फैसले का व्यक्तिगत और सामाजिक असर

इस फैसले के बाद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित जैसे हाई-प्रोफाइल नामों को राहत मिली है। कोर्ट रूम में फैसले के बाद शांति रही, और पीड़ित पक्ष व अभियोजन पक्ष में मायूसी दिखाई दी। कोर्ट के फैसले से स्पष्ट है कि केवळ आरोपों और प्रारंभिक जांच पर मामले को टिकाए रखना पर्याप्त नहीं, पुख्ता सबूत और प्रक्रिया अत्यंत आवश्यक है। इस फैसले के बाद भविष्य की जांच प्रक्रियाओं को लेकर बड़ी सीख भी सामने आई है, स्पष्ट साक्ष्य, पारदर्शिता और निष्पक्षता के बिना इतने गंभीर मामलों में सजा संभव नहीं हो सकती।

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