गौरैया पक्षी की लगातार कमी का कारण प्रदूषण और रेडिएशन…पेड़ों की अंधाधुंध होती कटाई, आधुनिक शहरीकरण और लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से गौरैया पक्षी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। एक वक्त था जब गौरैया की चीं-चीं की आवाज से ही लोगों की नींद खुला करती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। यह एक ऐसी पक्षी है जो मनुष्य के इर्द-गिर्द रहना पसंद करती है। गौरैया पक्षी की संख्या में लगातार कमी एक चेतावनी है कि प्रदूषण और रेडिएशन प्रकृति और मानव के ऊपर क्या प्रभाव डाल रहा है। गौरैया पृथ्वी पर सबसे आम और सबसे पुरानी पक्षी प्रजातियों में से एक है। ये छोटे, मनमोहक एवं शांति देने वाले पक्षी सदियों से हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं और प्रकृति में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।भारत और दुनियाभर में गौरैया पक्षी की संख्या में लगातार कमी आ रही है।

दुनिया भर की कई संस्कृतियों में, गौरैया सादगी, खुशी और सुरक्षा का प्रतीक है। यह उनकी पारिस्थितिक भूमिका के अलावा हमारी साझा मानव संस्कृति और लोककथाओं में भी उनके महत्व को दर्शाता है।घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत एवं शांतिपूर्ण पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते हुए बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती। गौरैया देशी पौधों वाले क्षेत्रों में पनपती है,तो क्यों न हम अपने बगीचे में कुछ पौधे लगाकर गौरैया को नया जीवन देने का उपक्रम करें उक्त बातें पर्यावरणविद स्वप्निल व्यास ने कही उन्होंने बताया इस नन्हें से परिंदे को बचाने के लिए ही पिछले कुछ सालों से विश्व गौरैया दिवस के उपलक्ष्य में मालवमंथन “पक्षी निलय”लगाने का आयोजन करता है। जिसके तहत आज विश्व गौरैया दिवस पर बटुकेश्वर दत्त उद्यान, साऊथ राज मोहल्ला,इंदौर में पक्षी निलय लगा कर आगामी दिनों में 500 निलय लगाने की शुरुआत भी की गई कार्यक्रम संयोजक श्रीमती आभा उपाध्याय ने संचालन किया वही आभार एन.के.उपाध्याय ने माना कार्यक्रम में विजया रघुवंशी, राकेश ओझा, संपत प्रजापत,आरती शर्मा,अनिता जोशी, लक्ष्मी गुप्ता उपस्थित रहे।